कालसर्प दोष

काल सर्प दोष बहुत से ज्योतिषियों का चहेता बन गया है और हर तीसरे या चौथे व्यक्ति को ये बताया जा रहा है कि उसकी कुंडली में काल सर्प दोष है तथा उसकी सारी परेशानियों एवम समस्याओं का कारण यही दोष है। यह मत बिल्कुल भी ठीक नहीं है क्योंकि अगर कुंडली में सारा कुछ राहू और केतू ही तय कर देंगे तो बाकि के सात ग्रहों का तो कोई महत्त्व ही नहीं रह जाता। और इस चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले आईए एक नज़र में काल सर्प दोष की परिभाषा पर विचार कर लें।

सबसे पहले यह जान लें कि काल सर्प दोष और काल सर्प योग दोनों का एक ही मतलब है तथा इनमें कोई अंतर नहीं है। प्रचलित परिभाषा के अनुसार कुंडली के सारे ग्रह, सूर्य, चन्द्र, गुरू, शुक्र, मंगल, बुध तथा शनि जब राहू और केतु के बीच में आ जाएं तो ऐसी कुंडली में काल सर्प दोष बनता है। उदाहरण के तौर पर अगर राहू और केतु किसी कुंडली में क्रमश: दूसरे और आठवें भाव में स्थित हों तथा बाकी के सात ग्रह दो से आठ के बीच या आठ से दो के बीच में स्थित हों तो प्रचलित परिभाषा के अनुसार ऐसी कुंडली में काल सर्प दोष बनता है और ऐसी कुंडली वाला व्यक्ति अपने जीवन काल में तरह-तरह की मुसीबतों का सामना करता है तथा उसके किए हुए अधिकतर प्रयासों का उसे कोई भी लाभ नहीं मिलता।

कालसर्प योग निवारण पूजा
इस बात का सदैव ध्यान रखें कि किसी भी अन्य पूजा की भांति ही कालसर्प दोष के निवारण के लिए की जाने वाली पूजा में भी पूरी विधि से संपूर्ण प्रक्रिया का पूर्ण होना पूजा के लिए चुने जाने वाले स्थान से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है तथा पूजा के लिए चयनित स्थान केवल विधिवत की जाने वाली पूजा के फल को बढ़ाने के लिए होता है। यदि त्रयंबकेश्वर जैसे धार्मिक स्थानों पर बैठे पंडित इस पूजा को पूरी विधि के साथ तथा कालसर्प दोष निवारण मंत्र की पूरी जाप संख्या के साथ करने में सक्षम हों तो निश्चिय ही इस पूजा को अपने शहर के किसी मंदिर की तुलना में त्रयंबकेश्वर जैसे धार्मिक स्थानों पर करवाना अधिक लाभकारी है।

किन्तु यदि इन स्थानों पर उपस्थित पंडित इस पूजा को विधिवत नहीं करते तथा काल सर्प योग के निवारण मंत्र का निश्चित संख्या में जाप भी नहीं करते तो फिर इस पूजा को अपने शहर के अथवा किसी अन्य स्थान के ऐसे मंदिर में करवा लेना ही उचित है जहां पर इस पूजा को पूरी विधि तथा मंत्रों के पूरे जाप के साथ किया जा सके। ध्यान रखें कि यदि आप त्रयंबकेश्वर तथा उज्जैन जैसे स्थानों पर परम शक्तियों का आशिर्वाद लेने के लक्ष्य से जाना चाहते हैं तो वह आशिर्वाद आप इन स्थानों पर पूर्ण श्रद्धा के साथ जाकर तथा यहां उपस्थित परम शक्तियों को पूर्ण श्रद्धा के साथ नमन करके भी प्राप्त कर सकते हैं। वहीं पर दूसरी ओर यदि आप इन स्थानों पर कालसर्प दोष के निवारण के लिए की जाने वाली कोई पूजा करवाने जा रहे हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि आपकी पूजा पूरी विधि तथा मंत्रों के जाप के साथ हो रही है।

त्रयंबकेश्वर तथा उज्जैन जैसे धार्मिक स्थानों पर जाना तथा इन स्थानों पर उपस्थित परम शक्तियों का आशिर्वाद लेना बहुत शुभ कार्य है तथा प्रत्येक व्यक्ति को यह कार्य यथासंभव करते रहना चाहिए, किन्तु इन धार्मिक स्थानों पर उपस्थित पंडितों के द्वारा दिशाभ्रमित हो जाना अथवा ठगे जाना एक बिल्कुल ही भिन्न विषय है तथा इसलिए धार्मिक स्थानों पर किसी भी प्रकार की पूजा का आयोजन करवाते समय बहुत सतर्क तथा सचेत रहने की आवश्यकता है जिससे आपके दवारा करवाई जाने वाली पूजा का शुभ फल आपको पूर्णरूप से प्राप्त हो सके।

• कालसर्प योग के निवारण के लिए की जाने वाली पूजा में भी कालसर्प दोष के निवारण मंत्र का 125,000 बार जाप करना अनिवार्य होता है।
• पूजा के आरंभ वाले दिन पांच या सात पंडित पूजा करवाने वाले यजमान अर्थात जातक के साथ भगवान शिव के शिवलिंग के समक्ष बैठते हैं तथा शिव परिवार की विधिवत पूजा करेंगे |
• इस के पूरा हो जाने पर पूजन, हवन तथा कुछ विशेष प्रकार के दान आदि करेंगे। जाप के लिए निश्चित की गई अवधि सामान्यतया 7 से 11 दिन होती है।
• संकल्प के समय मंत्र का जाप तथा इसके अतिरिक्त जातक द्वारा करवाये जाने वाले काल सर्प योग के निवारण मंत्र के इस जाप के फलस्वरूप मांगा जाने वाला फल भी बोला जाता है जो साधारणतया जातक की कुंडली में कालसर्प दोष का निवारण होता है।